Vodafone
Idea क्या बंद हो जाएगी? AGR
बकाया पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा झटका
वोडाफोन की याचिका पर सख्त टिप्पणी करते हुए देश की सबसे
बड़ी अदालत ने कहा- हम ऐसी याचिकाओं से वाकई हैरान हैं. एक मल्टीनेशनल कंपनी से
ऐसी अप्रोच की उम्मीद नहीं की जाती. हम इसे खारिज करेंगे.
Supreme
Court Rejects AGR Relief Plea by Vodafone Idea Airtel: देश की दिग्गज टेलीकॉम कंपनियों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा
झटका लगा है. कोर्ट ने सोमवार को वोडाफोन आइडिया, एयरटेल और टाटा टेलीसर्विसेज की एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) ड्यूज माफ करने की याचिकाएं खारिज कर दीं. जस्टिस जे. बी.
पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंस ने इन याचिकाओं को गलत तरीके से तैयार
बताया और सुनवाई के दौरान सख्त टिप्पणी भी की.
सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी जब वोडाफोन की ओर से पेश हुए
और जुलाई तक सुनवाई टालने की मांग की, तो कोर्ट ने सवाल किया कि इसकी जरूरत क्यों है? इस पर रोहतगी ने कहा कि वे कोर्ट को परेशान किए बिना समाधान
निकालने की संभावनाएं तलाश रहे हैं. इस पर कोर्ट ने दो टूक कहा,
"अगर सरकार आपकी मदद करना चाहती है, तो उसे करने दीजिए. हम बीच में नहीं आएंगे. लेकिन यह याचिका
खारिज की जाती है."
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हम हैरान हैं इस याचिका से - सुप्रीम कोर्ट
वोडाफोन की याचिका पर सख्त टिप्पणी करते हुए देश की सबसे
बड़ी अदालत ने कहा- हम ऐसी याचिकाओं से वाकई हैरान हैं. एक मल्टीनेशनल कंपनी से
ऐसी अप्रोच की उम्मीद नहीं की जाती. हम इसे खारिज करेंगे.
टेलीकॉम कंपनियां क्या कर रही थी मांग?
वोडाफोन, एयरटेल
और टाटा टेलीसर्विसेज ने AGR ड्यूज
की गणना में गलती का हवाला देते हुए ब्याज, जुर्माना और जुर्माने पर ब्याज को माफ करने की मांग की थी.
वोडाफोन ने तो करीब 30,000
करोड़ रुपये की छूट की मांग रखी थी. कंपनियों का तर्क था कि यह राहत उन्हें
वित्तीय संकट से बाहर निकाल सकती है और प्रतिस्पर्धा बनाए रखने में मददगार होगी.
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केंद्र की भूमिका पर क्या कहा कोर्ट ने?
रोहतगी ने कहा - केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के 23 जुलाई 2021 के फैसले की वजह से कंपनियों को राहत देने में असमर्थ है.
लेकिन कोर्ट ने साफ किया कि अगर सरकार मदद करना चाहती है, तो वह स्वतंत्र है. कोर्ट बीच में नहीं आएगा, लेकिन वह खुद अपने 2021 के फैसले में बदलाव नहीं करेगा और न ही उस पर कोई छूट दी
जाएगी.
क्या था पिछला फैसला?
इससे पहले 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने AGR ड्यूज से जुड़ी याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा था कि
टेलीकॉम कंपनियों को तय रकम चुकानी होगी. कंपनियों ने अब उसी फैसले के तहत सिर्फ
ब्याज और जुर्माने से राहत मांगी थी, लेकिन कोर्ट ने दोहराया कि वह अपने पुराने फैसले पर कायम
है.

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